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Shahi Snaan

आग्नेयं भस्मना स्नानं
          सलिलेत तु वारूणम |
आयोहिस्टादि ब्राह्मण
          व्यावयम गोरजमस्म्रतम ||

शारीरिक शुद्धि हेतु स्नान का अत्यंत महत्व बताया गया हैं | शास्त्रों में चार प्रकार के स्नान वर्णित हैं | भस्म, जल, मन्त्र एवं गोरज स्नान |

मनु स्मृति के अनुसार भस्म स्नान को अग्नि स्नान, जल से स्नान को वरुण स्नान, आयोहिस्टादि मंत्रों द्वारा लिए गये स्नान को ब्रम्‍ह स्नान तथा गोधूलि द्वारा किए गये स्नान को वायव्य स्नान कहा जाता हैं |

अत: स्नान द्वारा ही हमें शुद्धता प्राप्त होती हैं एवं मन प्रसन्न रहता हैं |

अब विचार करें की जब साधारण स्नान से हमे इतना लाभ होता है तो कुंभ जैसे विशिष्ट पर्व पर पवित्र माँ गंगा के जल में धर्माचार्यों संत सतगुरु माँ योग योगेश्वरी यति जी के साथ साही स्नान करने का यदि हमे अवसर प्राप्त हो जाए तो हमारे जीवन को दिशा एवं दशा बदलने मे कहाँ समय लगने वाला हैं |